शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

मुस्कान वाले फ्रेम

उसके पास ...
मेरे होठों की मुस्कान थी...
औऱ मेरे पास...
उस मुस्कान को सहेजते...
अनगिनत फ्रेम...
गोल ...चौकोर... तिकोने...
रंगबिरंगे फ्रेम...
हर एक फ्रेम के साथ...
एक अदद मुस्कान...
कुछेक ब्लैक एंड व्हाइट फ्रेम भी हैं...
क्योंकि कभी-कभी गुस्से वाले फ्रेम में भी...
मैं एक मुस्कुराहट ढूंढ ही लेता था...
थोड़ा सा अटपटा लगता है...
लेकिन मेरे ज़िंदगी के फ्रेम...
किसी तस्वीर की बजाय...
शायद मुस्कुराहट के आदी हैं...
हां ! कुछ धुंधली तस्वीरों वाले फ्रेम भी हैं...
लेकिन थे भी रंग नहीं...
मुस्कान ज़्यादा मुखर है...
मेरे उकेरे कुछ स्केच भी...
गिनतीभर तस्वीरों वाले फ्रेम के साथ...
ताकते रहते हैं...
हर पल मुस्कुराती...
मेरी ज़िंदगी की अल्बम को...
जो संजोए है...
सहज मुस्कान वाले...
ढेरों पनीले और सपनीले फ्रेम...

5 टिप्‍पणियां:

  1. कविता अच्छी है हेमंत लेकिन शिल्प पर थोड़ा और काम करने की ज़रूरत है ।

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  2. बहुत अच्छा लिखा है..बाकी शरद जी की बात पर ध्यान देना ही चाहिये आपको.

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  3. मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद...मैं जरुर ध्यान रखूंगा...

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  4. कविता अच्छी है और प्रवाह दिखता है। पहले की तुलना में काफी सुधार है। थोड़ी कसावट की कमी है...कोशिश जारी रखिए।

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