बुधवार, 7 अगस्त 2013

. . . मैं एक्सट्रा इमोशनल नहीं हूं . . .

 " याचना नहीं अब रण होगा ... जीवन जय या कि मरण होगा "
आदरणीय दिनकर जी ने किस परिप्रेक्ष्य और किस मनोस्थिति में जाने अपनी कौन सी मनोदशा इस रचना के माध्यम से कागज पर उतारी होगी... लेकिन पढ़ने के बाद अक्सर इसकी जरुरत जिंदगी में महसूस जरुर होती रही है । कम पढ़ा लिखा हूं... हिंदी पढ़ने का सौभाग्य दसवीं तक ही मिला, इन पंक्तियों को शायद तभी पढ़ा होगा लेकिन खून आज भी खौल उठता है ... क्यों ??? क्योंकि वो किसी नीति , कुनीति , विदेश नीति, राजनीति या दलगत सुभीति का मोहताज नहीं है ... खून देखकर कनपटी की नसें तमतमा उठती है .... रुधिर प्रवाह दुगने वेग के साथ इमोशंस को अपने साथ अपने चरम तक ले जाता है ....
लेकिन आखिर कब तक हम इन्हें सिर्फ रुटीन ट्रीटमेंट देते रहेंगे ...  सीमा पर पांच जवान शहीद हो गए ... बॉर्डर पर अलर्ट ... संसद में चर्चा...हंगामा... नेताओं के बयान... पब्लिक की प्रतिक्रिया ... गली-सड़कों -मोहल्लों-घरों में बातें ... बसों-मेट्रो-ट्रेनों में बहस ... अखबारों में एक बड़ी खबर ... हेडलाइन स्टोरी ... बैनर ... और टेलीविजन ... ब्रेकिंग न्यूज़.... लगातार लाइव.... स्टूडियो गेस्ट, डिस्कशन .... ये खबर है, बहुत बड़ी खबर ... लेकिन कब तक जब तक कोई इससे बड़ी खबर नहीं आ जाती है  ... लेकिन ये सिर्फ खबर नहीं है... बयान नहीं है ... नारे नहीं हैं ... कोई मौका नहीं है अपनी राजनीति चमकाने का ... ये हकीकत उन जवानों की है जो जान हथेली पर रखकर दिन-रात हमारी हिफाजत करते हैं । चाहे वो देश की सीमा हो या देश के भीतरी हिस्से , आपकी और हमारी हिफाजत की यही हकीकत है । 
बात हम आंकड़ों और उदाहरणों की नहीं करेंगे, उनमें तो आम आदमी उलझ कर रह जाएगा ... आंकड़े हर काम की चीज़ की ही तरह दो ही काम आते हैं या तो वास्तव में इस्तेमाल में लाने के या फिर लोगों को बरगलाने के ।  आज़ादी के बाद से ऐसा कितनी बार हो चुका है और किसने क्या कदम उठाए, ये सर्वविदित है ... हमारा काम नहीं है , हमें बात नीतियों पर करनी होगी, कड़े फैसले लेने होंगे, सरकार जिसकी भी हो , सत्ता जिस किसी भी दल के हाथ में हो, किसी जवान की शहादत पर सियासत राजनीति नहीं है ... पतन है । बयान लगातार आ रहे हैं ... नेता हो ... अभिनेता हो ! रक्षा विशेषज्ञ हो ... या फिर स्वयंभू एक्सपर्ट । मेरे जैसे अस्तित्वहीन पात्र तो बस सार्थकता और बौधिक्ता के अभाव में मूकदर्शक बने बैठे हैं ... कि हां अब ऐसे कदम उठाए जाएंगे कि कोई हमारे देश की तरफ आंख उठाकर देखने का दुस्साहस तक नहीं करेगा ।
दिल्ली में रहता हूं ... नौकरी नोएडा में है ... तो कुछ चीजें शेयर करना चाहता हूं , सीपी में हर साल की तरह इस साल भी सेल लगी हुई है । दिल्ली-एनसीआर के हर बड़े मॉल में हर छोटे-बड़े ब्रांड पर 50-60 % तक का डिस्काउंट चल रहा है। अट्टा मार्केट में भी भीड़ कम नहीं है तो राजौरी गार्डन, तिलक नगर , रोहिणी, साउथ एक्स, जीके ... हर जगह यही हाल है । लोग मोमोज़-नूडल्स उसी चाव से खा रहे हैं तो छोले भठूरे , गाल गप्पे, डोसा-उत्तपम भी तमाम इटैलियन फैंच क्विजीन के आगे ही चलते नज़र आएंगे ।
हम लोग बाते चाहें जैसी भी कर लें ... जिंदगी करीब करीब यही जी रहे हैं, अपने अपने घरों में ...अपने अपने दड़बों में ... अपने अपने महलों में ...अपने अपने दायरों में ... अपने अपने परिवेश में ... अपने अपने कम्फर्ट ज़ोन में ...
लेकिन सीमा पर जो जवान तैनात हैं या देश के भीतर भी दुर्गम औऱ खतरनाक इलाकों में जिनकी पोस्टिंग है, वो ऐसी कितनी सेल, सैर-सपाटे का मज़ा ले पाते हैं ... ऐसे कितने स्वाद, ज़ायके, चटखारे उनको याद रहते हैं ... कुछ किस्मत वाले होते हैं तो वो ऐसे हर लम्हे को सालों तक यादों में सहेज कर रखते हैं , तब तक जब तक कोई और खूबसूरत लम्हा उसकी जगह नहीं ले लेता । उन्हें चोट लगती है तो छोटी-मोटी चोट, बीमारी का ज़िक्र तो वो घर पर करते भी नहीं हैं, घरवाले नाहक ही परेशान होंगे । बस एक मैसेज ... कुछ दिन बात नहीं हो पाएगी, या फिर कभी कभी तो वो भी नहीं । घरवाले या तो सिर्फ इंतज़ार करते रहते हैं या फिर कयास लगाते रहते हैं ।  लोग कहते हैं फौज को उसी हिसाब से सुविधाएं भी तो मिलती हैं... जी हां मिलती हैं, लेकिन जितनी मिलनी चाहिए शायद उतनी नहीं मिलती । एक फौजी ... फिर चाहे वो एक जवान हो या ऑफिसर ... जब वो घर आता है तो हर एक लम्हे को एक पूरी जिंदगी सरीखा जी लेना चाहता है । इन लम्हों को मैने देखा है ... महसूस किया है ... जिया है ... 
एक बार एनडीए के लिए मैने भी कोशिश की थी, क्लीयर नहीं हुआ... इलाहाबाद... लास्ट अटेम्ट था, बस कुछ दिन वहां जीने को जरुर मिले, औऱ कुछ यादें मिलीं जिंदगी भर के लिए। 
मुझे अफसोस है कि मै एनडीए क्लीयर ना कर सका ... लेकिन किसी माता-पिता को ये अफसोस नहीं होना चाहिए कि उनका बेटा फौज में क्यों गया । किसकी गलती की सज़ा उनके बेटे या बेटी ने भुगती । आखिर क्यों पड़ौसी मुल्क जब चाहे ऐसे घिनौने कृत्य को अंजाम देते हैं और हम लोग चंद दिन बातें करके खामोश बैठ जाते हैं ... बात यहां देश की संप्रभुता और अखंडता के साथ साथ देशवासियों की भी है ... शहादत पर सियासत हमें नहीं चाहिए ... इंटेलेक्चुअल जुगाली की एक किस्म खरपतवार की तरह फली फूली है ... हमें वो भी नहीं चाहिए ... समस्या क्या है हम सभी जानते हैं ... सालों से जानते हैं ... हमें व्याख्यान नहीं चाहिए ... कोरे बयान नहीं चाहिए... हमें इस समस्या का समाधान चाहिए ।

1 टिप्पणी:

  1. मर रहें हैं बेबसी में बेकसूर लोग
    दीमकों से खा रहे मुल्क के रोग़
    नेताओं को निगल ले, तू बनके आग़
    जाग अब तो जाग, जाग दुर्गा जाग

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