बुधवार, 6 नवंबर 2013

Delhi : You Suggest - दिल्ली समस्याएं और समाधान


एक कदम हम बढ़ाएं
एक कदम तुम
एक कदम हम बढ़ाएं
एक कदम तुम
गाएं खुशियों का तराना
गाएं खुशियों का तराना
साथी हाथ बढ़ाना ... 
साथी हाथ बढ़ाना ...


एक नुक्कड़ नाटक में इन पंक्तियों का इस्तेमाल किया था कॉलेज के दिनों में, आज भी प्रासंगिक है... हमेशा रहेंगी । क्योंकि बदलाव, सुधार या विकास तभी हो सकता है जब आपके परिवेश में एक से ज़्यादा आयाम उसे अपनाना चाहते हों। सरकार हो, विपक्ष या आम जनता ... जिम्मेदारी सभी की है। 

इससे पहले हम बात कर चुके हैं उन समस्याओं की, जिनसे आपकी दिल्ली, हमारी दिल्ली रोज़ाना जूझ रही है, हम बात कर चुके हैं उन मुद्दों की जो हमारी दिल्ली के इंटीग्रेटेड विकास के लिए अवश्यंभावी है। मुद्दे हमारे हैं तो रास्ता भी हमें ही सुझाना होगा। समस्याएं हमारी दिल्ली की हैं तो समाधान भी हमें ही सुझाना होगा ताकि इन तमाम समस्याओं से हमें जल्द से जल्द मुक्ति मिल सके।

अपराध और भयमुक्त दिल्ली
राजधानी दिल्ली को अपराध मुक्त और भयमुक्त बनाना होगा , जहां आम नागरिक खुद को सुरक्षित महसूस करें तो महिलाएं भी बिना किसी डर के जिएं।
दिल्ली पुलिस में खाली पड़े पदों को जल्द से जल्द भरा जाए, पुलिस को अत्याधुनिक हथियार उपलब्ध कराए जाएं, उपयुक्त ट्रेनिंग दी जाए। 
राजधानी के बॉर्डर और महफूज़ किए जाएं। 
वीआईपी सुरक्षा में तैनात जवानों को आम लोगों की सुरक्षा में भी इस्तेमाल किया जाए। 
किसी भी देश की पुलिस का मॉडल आंख मूंदकर अपनाया ना जाए, पुलिसिंग का एक ऐसा मॉडल विकसित किया जाए जो हमारी दिल्ली की जरुरत है। 
दिल्ली जैसे शहर में जितनी विविधताएं हैं उतनी ही सुरक्षा की तरह-तरह की जरुरतें भी। 
पुलिस भले ही गृह मंत्रालय के अधीन हो या दिल्ली के , आम नागरिक का खुद को सुरक्षित महसूस करना बहुत जरुरी है।

महंगाई से मुक्ति
जिस तरह से महंगाई लगातार नए रिकॉर्ड बना रही है, सरकार को ये देखना होगा कि महंगाई किसी भी तरह काबू से बाहर ना जाए। 
जमाखोरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए, मिलावटखोरों, मुनाफाखोरों को ना बख्शा जाए।
सप्लाई और डिमांड का सामंजस्य बनाकर रखा जाए, नए नियम बनाने की शायद जरुरत ना पड़े लेकिन जो भी नियम हैं उनका कड़ाई से पालन किया जाए। 
करप्शन को किसी भी स्तर पर बर्दाश्त ना किया जाए, महंगाई तभी काबू में रह पाएगी।

बिजली-पानी का अधिकार
निजीकऱण अगर समाधान है तो उसे समस्या ना बनने दिया जाए। उसे लाल-फीताशाही की भेंट ना चढ़ने दिया जाए।
निजी कंपनियों पर नज़र रखी जाए, औचक ऑडिट को प्राथमिकता दी जाए, लोगों से जुड़ा मुद्दा है, लिहाज़ा ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल किया जाए ताकि कहीं बिल ज्यादा है तो क्यों है ये पता किया जा सके। पारदर्शिता बहुत जरुरी है, इसके लिए सिस्टम में लोगों को शामिल करना बहुत जरुरी है, खासकर उन लोगों के लिए जिनका उनसे सीधा सरोकार है।
साथ ही जो लोग कानून का पालन नहीं करते हैं उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए, पानी-बिजली चोरों को ना बख्शा जाए।

विकास में सामंजस्य
विकास में सामंजस्य होना बहुत जरुरी है ये मैने पहले भी कहा था। सामंजस्यता के अभाव में विकास अपनी उपयोगिता खो बैठता है।
आबादी अगर 10,000 लोगों की है तो सुविधाएं भी उसी अनुपात में हो, अन्यथा विकास और सुविधाएं अपनी सार्थकता खो बैठते हैं।
या फिर दो बड़ी सड़कों को जोड़ने वाली सड़क बदहाल हो तो उसकी कोई उपयोगिता नहीं रह जाती है।
एक फ्लाईओवर या अंडरपास बनता है तो उसके आसपास भी ध्यान देना होगा, विकास में सामंजस्य जरुरी है।

विकास की समग्रता
विकास की समग्रता होना बेहद जरुरी है, अगर आप कनॉट प्लेस को रेनोवेट करते हैं तो पुनर्वास कॉलोनियों के विकास का भी आपको ध्यान रखना होगा।
अगर नई दिल्ली की सड़कें चमचमाती हुई हों तो बाहरी दिल्ली के लोगों को भी सड़क का हक है।
बारिश में शहर तालाब ना बने ये प्लानिंग कौन करेगा।
टाउन प्लानिंग में ध्यान दिया जाए। मास्टर प्लान का विधिवत पालन किया जाए और उन चीज़ों को जगह दी जाए जो शहर की जरुरत हैं।
सरकारी एजेंसियों की जिम्मेदारी तय की जाए।

मैंने पहले ही कहा है ... हमें वर्ल्ड क्लास दिल्ली चाहिए थर्ड क्लास नहीं !!!

प्रदूषण से निवारण
प्रदूषण शहर को धीरे-धीरे खा रहा है।
हमें सड़कों पर वाहनों की संख्या पर अंकुश लगाना होगा।
रात के वक्त दिल्ली शहर की सड़कों से गुजरने वाले भारी वाहनों की तादाद को काबू में करना होगा। हमें वैकल्पिक उपायों पर जल्द से जल्द काम करना होगा।
प्रदूषण फैलाने वाले बची-खुची फैक्ट्रियों को शहर से बाहर निकाल फेंकना होगा।
एक शहर को उसमें रहने वाले लोग ही बचा सकते हैं, लिहाज़ा हमें अपने शहर को खुद ही बचाना होगा।

बेहतर सार्वजनिक परिवहन सेवा
शहर को एक इंटीग्रेटेड ट्रांसपोर्ट सिस्टम की दरकार है, मेट्रो को शहर के हर कोने तक पहुंचाया जाए।
जहां मेट्रो नहीं जा सकती वहां मोनो रेल या फिर कोई दूसरा उपयुक्त ट्रांसपोर्ट सिस्टम, जैसे दिल्ली परिवहन सेवा यानि डीटीसी की उपलब्धता दिन के 24 घंटों किसी ना किसी तरह बरकरार रखी जाए।
ग्रामीण सेवा , सारथी सेवा जैसी सेवाओं को रेग्युलेशंस के दायरों में चलाया जाए।
सार्वजनिक परिवहन सेवा को सस्ता रखा जाए साथ ही सुरक्षित भी।

बेहतर ट्रैफिक व्यवस्था और जाम से निजात
एक बेहतर ट्रैफिक सिस्टम, सोचे-समझे और सिर्फ जरुरी डायवर्जन। 
वीआईपी मूवमेंट के समय बेहतर प्लानिंग।
लोगों को समय-समय पर ट्रैफिक नियमों की जानकारी देते रहना, अवेयरनेस कैंपेन चलाना। 
और साथ ही लोगों को गलती करने से रोकना प्राथमिकता रहे बजाय चालान काटने के।

शहर की हरियाली का ध्यान
पेड़ शहर को जिंदा रखते हैं। हमें जिंदा रहने के लिए अपने पेड़ों को जिंदा रखना होगा।
रिज इलाके को अतिक्रमण से बचाना होगा।
ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे, और पेड़ों को कटने से बचाना होगा। कई बार पेड़ सरकारी एजेंसियों की लापरवाही की भेंट चढ़ जाते हैं तो कई बार लोग अपनी बेवकूफी के चलते जान-बूझकर भी पेड़ों को कटवा देते हैं।
जलस्तर को भी बरकरार रखना होगा।
ध्यान सरकार को भी रखना होगा, संस्थाओं को भी और हमें भी। 

साफ-सुथरा शहर और गंदगी से छुटकारा
शहर को साफ सुथरा रखना जितना सरकार की जिम्मेदारी है उतनी ही यहां रहने वाले लोगों की भी।
अपने स्तर पर सभी को प्रयास करने होंगे।
हमें ध्यान रखना होगा कि हम अपने आस-पास गंदगी ना फैलाएं।
और उसके बाद सरकार को ये जिम्मेदारी लेनी होगी कि वो शहर को साफ सुथरा रखे और जिस सरकारी एजेंसी की भी जिम्मेदारी है वो पूरी ईमानदारी से अपने काम को अंजाम दे, नहीं तो एक बार हालात काबू से बाहर जाने के बाद वापस ठीक करने में ज्यादा प्लानिंग, ज्यादा मेहनत और ज्यादा फंड्स की जरुरत होगी। शहर को कूड़ाघर बनने से रोकना होगा। 

अवैध क़ॉलोनियों का नियमन
अवैध कॉलोनियों का नियमन हो या ना हो ये भले ही बहस का मुद्दा रहा हो लेकिन अब ये इसी शहर का एक अभिन्न अंग बन चुकी हैं जहां एक शहर का आबादी का एक बड़ा हिस्सा रहता है।
अब ऐसे हालात में कोरे चुनावी वादों को छोड़कर इन कॉलोनियों के लिए एक उपयुक्त पॉलिसी की जरुरत है जो इनके अस्तित्व को विकास की समग्रता प्रदान करे। 

यमुना को बचाना होगा
एक नदी एक शहर को जीवन देती है जबकि दिल्ली एक ऐसा शहर बन गया है जो उस नदी का ही काल बन गया।
हज़ारों करोड़ों रुपए यमुना को साफ करने के नाम पर खर्च कर दिए गए लेकिन हालात जस के तस। कहां गए ये जांच का विषय है , ये बाद का विषय है... फिलहाल हमें हर हाल में यमुना हो बचाना होगा।
खादर इलाके में अतिक्रमण को रोकना होगा।
सरकारी या गैर-सरकारी हर तरीके के निर्माण पर नज़र रखनी होगी।
नदी में गिरने वाले नालों को जितना संभव हो साफ करना होगा, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की संख्या और क्षमता बढ़ानी होगी।
साथ ही नदी के बहाव को रोकने, बांधने की कोशिश करने से भी बचना होगा।

सीवरेज सिस्टम में सुधार
शहर के कई हिस्सों में सीवरेज सिस्टम सालों पुराना है, आउटडेटेड हो चुका है, ऐसे में हल्की सी बारिश भी झेल पाना उसके बूते से बाहर हो जाता है।
ऐसे में भुगतना वहां के लोगों को पड़ता है।
ऐसी जगहों की पहचान कर जल्द से जल्द इस सिस्टम को बदलना पड़ेगा।
साथ ही शहर के कई हिस्सों में सीवरेज सिस्टम है ही नहीं ऐसे में लोगों की इस बुनियादी जरुरत को वहां तक पहुंचाना सरकार की जिम्मेदारी है, ये कोई कोरा चुनावी वायदा नहीं होना चाहिए।  

भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली
दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे।
घूस लेने वालों के साथ साथ घूस देने वालों पर भी कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
हेल्पलाइन नंबर, पहचान गुप्त रखना, सही शिकायत पर कड़ी कार्रवाई और झूठी शिकायत पर सज़ा ... सिस्टम में सब कुछ है, सवाल सिर्फ मुकम्मल इस्तेमाल का है।
हमें जागरुक होना होगा, जहां जरुरत है वहां लोगों को जागरुक भी करना होगा ताकि भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली का सपना सिर्फ सपना बनकर ना रह जाए।

और अब बात सबसे जरुरी और अहम समाधान की ...

चुनावी वादों की सच्चाई
चुनावों के वक्त नेता वादे तो करते हैं
लेकिन क्या जीतने के बाद ये वादे पूरे भी किए जाते हैं,
क्या जीतने के बाद नेता पलटकर लोगों का रुख भी करते हैं।
जीतने के बाद नेता आम से खास हो जाते हैं या फिर जो खास हैं वो खास ही रहते हैं।
ऐसे में उन तक पहुंचा कैसे जाए, इस पहेली को आम जनता को ही सुलझाना होगा।
जनता और नेता के बीच के इस फासले को पारदर्शिता के उसी हथियार के जरिए मिटाना होगा जो लोकतंत्र ने हमें इस सिस्टम के हर स्तर पर प्रदान किया है। 

समस्याएं हैं तो समाधान भी है
लोग परेशान हैं तो अनजान भी हैं ...
जनता से जुड़े हर मुद्दे को उठाना होगा ...
सिस्टम में पारदर्शिता को हथियार बनाना होगा ...
दिल्ली को चलाने में बढ़े लोगों की भागीदारी
हर आवाज़ को हमें ...
जनता की आवाज़ बनाना होगा। 

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