शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

आधी बची है रात ...

एक लफ्ज़ भिजवाया है ...
ढलती शाम के साथ...
लिख रहा हूं बाकी पयाम...
अभी आधी बची है रात...
हर पहर से इकरार है इंतज़ार का ...
आहिस्ता आहिस्ता हर लम्हा चुन रहा है अल्फाज़...
एक लफ्ज़ भिजवाया है ...
ढलती शाम के साथ...
लिख रहा हूं बाकी पयाम...
अभी आधी बची है रात ...
हरफ उठा लेना तुम ...
स्याही बदल - बदल कर
भेजी है बैरंग लिफाफों में
हर मुख्तसर सी मुलाकात...
एक लफ्ज़ भिजवाया है ...
ढलती शाम के साथ...
लिख रहा हूं बाकी पयाम...
अभी आधी बची है रात ...
मजमून पर ना जाना...
तुम ही तो हो इबारत...
आज पयाम में भेजी है तुम्हें...
फिर वही पूनम की रात...
फिर वही पूनम की रात...
एक लफ्ज़ भिजवाया है ...
ढलती शाम के साथ...
भेजी है बैरंग लिफाफों में
हर मुख्तसर सी मुलाकात...
आज पयाम में भेजी है तुम्हें...
फिर वही पूनम की रात...
एक लफ्ज़ भिजवाया है ...
ढलती शाम के साथ...

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