मंगलवार, 5 अगस्त 2014

पेशेवर... एहसान-फरामोश

हर हर्फ़ चुप है
क्यूँ क़लम चुप है
नज़रें बेबस नहीं 
बेशर्म हैं...
और चुप हैं
पर्दे के पीछे विकृत से
गुनहगार हैं चेहरे 
ख़ामोश हैं
ये किन लोगों से इंसाफ़ चाहिए तुम्हें
ये कमज़र्फ हैं 
पेशे से एहसानफरामोश हैं ...

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