सोमवार, 20 जून 2016

कागज़ पर छपे सपने




वो सपने बेचते हैं…
कागज़ पर छपे हुए…
हिंदी-अंग्रेजी… 
हार्ड बाउंड या पेपरबैक…
ज़िंदगी का ब्लैक एंड व्हाइट
एक रंगीन सच…
किसी की सोच…
किसी के सपने…
शब्दों में लिपटे…
ख्वाब… पराए और अपने…
सपनों का बाज़ार…
बहुत जरूरी है…
बेचने और खरीदने वाले के साथ…
ये सपने देखने वाले को भी रोटी देता है…
क्योंकि खाली पेट के सपने…
बौद्धिक बदहज़मी का सबब बनते हैं...
जैसे
कागज़ पर छपे सपने...
जल्दी फीके पड़ जाते हैं
कागज़ पर छपे नोटों से...
वो अक्सर हार जाते हैं...
उनको ज़िंदा रखना होगा...
किसी क्रांति के लिए नहीं...
अपने खुद के वजूद के लिए...
ज़िंदा रहने के लिए नोटों की ही नहीं...
सपनों की भी जरूरत होती है . . .
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हेमन्त वशिष्ठ

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