बुधवार, 8 जून 2016

' उड़ता पंजाब ' के मायने


अब ये वाकई समझ से बाहर होता जा रहा है कि लोग आखिरकार सेंसर बोर्ड के पीछे हाथ-पांव-मुंह धोकर क्यों पड़े हैं। ' उड़ता पंजाब ' अब ये क्या नाम हुआ बताईए... जनाब जिस क्रिया कलाप के उपरांत उठना भी बमुश्किल होता है, आप वहां उड़ने की बातें कर रहे हैं (यही कुछ होगा ना आपकी फिल्म में)... ये तो Newton के सिद्धांतों के भी खिलाफ है। आप प्रकृति के विपरीत कैसे जा सकते हैं। Creative freedom के नाम पर कुछ भी परोस दिया जाएगा क्या ? 
फिर चुनाव भी जल्द होने वाले हैं, ऐसे में पंजाब को कैसे उड़ने दिया जा सकता है। चुनावों के बहुत दूरगामी परिणाम होते हैं जी, हैं जी... हां जी !!! ... आप समझते ही नहीं। और फिर देखिए फिल्म के नाम में जब दिल्ली हुआ तो ...'चलो दिल्ली' , उड़ो दिल्ली क्यों नहीं। गैंग्स ऑफ वासेपुर... मेरठिया गैंगस्टर, ज़िला ग़ाज़ियाबाद... मद्रास कैफे, बॉंबे वेल्वेट... वगैरह-वगैरह। Go Goa Gone भी इसी तरह बर्दाश्त की गई। गोवा में क्या वही सब होता है, लेकिन आप लोग सुधरेंगे नहीं।
 उड़ता पंजाब ... मतलब कुछ भी !!! नाम उड़ता गुलाब रख दो भाई... उड़ता जुराब रख दो। फिर जनाब शेक्सपीयर साहब भी तो कह गए थे जी ... what's in a name. "A rose by any other name would smell as sweet". अब आप क्या शेक्सपीयर से भी बड़े भारी क्रिएटिव हो गए हैं।
खैर, शेक्सपीयर तो विदेशी मामला हुआ, बात एक जांचे-परखे देसी नुस्खे की... कबूतर और बिल्ली का किस्सा तो आप सभी जानते हैं, कबूतर बिल्ली को देखकर अपनी आंखें बंद कर लेता है और मान लेता है बिल्ली अब नहीं है, वो चली गई है... और बेशक ये कलियुग है लेकिन आप यकीन मानिए... ये सिद्ध टोटका आज भी उतना ही प्रभावशाली है।
आप क्या कीजिए, उड़ता पंजाब फिल्म के नाम में से पंजाब हटा दीजिए और यकीन मानिए, जैसे ही आप ऐसा करते हैं, ये फिल्म एकदम झूठी हो जाएगी जनाब... ड्रग्स-फ्रग्स फलाणा-ढिकणा सब समस्याओं से तुरंत सबको छुटकारा मिल जाएगा... सब एकदम छूमंतर !!!

फिर समझो ना यार ...फिल्म जरूरी है या समाज ...
और ऐसी क्या क्रांति करना चाहते हो भाई, जो उड़ाने से ही हो सकती है। 

मान जाओ बुद्धिजीवी... समझो... इतनी कांट-छांट के बाद वैसे भी कौन उड़ सकता है।

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