मंगलवार, 30 अगस्त 2016

किसका मकसद !!!

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एक 13 साल का बच्चा
टीवी पर रियलिटी शो में
अपनी किस्मत आजमाता है
उसका कोई हमउम्र
उसी वक्त
घाटी में पत्थर उठाता है
पत्थर फेंकने वालों से मुझे कोई हमदर्दी नहीं...
लेकिन वो नौजवां भी देश का होता है ...
जिसे गुमराह कर दिया जाता है
मत पूछो उस सिपाही की दास्तां
जिसे रोज़ ज़िंदा रहना होता है...
वो भी इंसां है
जिसे विलेन घोषित कर दिया जाता है...
उन हाथों में कलम
और लैपटॉप की खबर
घाटी पहुंच भी नहीं पाती है...
फिर से भड़की हिंसा
कुछ और जानें लील जाती है...
क्यों फेंके जाते हैं पत्थर...
कितनी घातक है पैलेट गन...
वार्ताओं में...
बैठकों में ...
रोज़ इनके जवाब ढूंढे जाते हैं...
और पर्दे के पीछे चलते दिमाग
एक पूरी पीढ़ी को
आज़ादी के नाम पर...
बरगलाए चले जाते जाते हैं...
कर्फ्यू में क़ैद
 जिनके दिन हुए...
वो अपने घरों में क़ैद हैं...
उनके बस्ते ...कापी...कलम किताबें
सब अलमारियों में बंद हैं...
जिनको इनका मतलब तक नहीं पता...
वो मासूम तो बस...
शाम... खेलने को लेकर फिक्रमंद है,
अलगाववादियों की साज़िशें,
खत्म नहीं होती
लेकिन घर का राशन
खत्म होता जाता है
हाथ कांपते तो होंगे
जब एक जवान
बेकाबू भीड़ की तरफ निशाना लगाता है
धर्म नहीं ....मज़हब नहीं...
लेकिन भीड़ का मकसद तय कर दिया जाता है...
जिनको आज़ादी नहीं
ज़िंदगी चाहिए
उनको ज़िंदगी जीने दो ...
जिनके हाथ में...
उनका बचपन...
उनका लड़कपन छीनकर...
कोई अपना मकसद थमा कर चला जाता है 
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हेमन्त वशिष्ठ
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शनिवार, 20 अगस्त 2016

#Happyworldphotographyday तस्वीरें मुबारक हो ...


ये तस्वीर माउंट आबू के गुरु शिखर की है। माउंट आबू... राजस्थान और आस-पास का एकमात्र हिल-स्टेशन है और गुरु शिखर, माउंट आबू और राजस्थान की सबसे ऊंची जगह।
आप गाड़ियों से एक निर्धारित जगह तक जा सकते हैं, उसके बाद शिखर तक का सफर आपको एक छोटे से बाज़ार, हंसमुख दुकानदारों... और एक सीढ़ीनुमा रास्ते से तय करना होता है।
शिखर पर एक मंदिर भी है... और एक विशालकाय घंटा भी, जिसे सैलानी फोटो फ्रेम सरीखा ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं। गुरु शिखर से माउंट आबू और आस-पास का बहुत ही मनोरम दृश्य आप देख सकते हैं।
वहां...ऊपर...उस शिखर पर... आस-पास से परे, उन नज़ारों को महसूस करते मैने पाया ...तमाम लोग या तो फोटो खिंचवाने...खींचने में तल्लीन हैं या फिर सेल्फी की दुनिया में आत्ममुग्ध हैं। बस फिर क्या था... खुद को रोकना मुश्किल होता गया और मैने भी मोबाइल फोन कैमरे से लोगों को  तस्वीरों में ढालना शुरु कर दिया।
तस्वीरें खींचने... खिंचवाने...देखने...रूकने-ठहरने और सराहने वालों के लिए हैप्पी वर्ल्ड फोटोग्राफी डे।

शनिवार, 13 अगस्त 2016

लोकतंत्र में भेड़ों का महत्व


बात सही है
यहां अब भेड़ियों का वर्चस्व है...
लोकतंत्र में फिर भी
भेड़ों का बहुत महत्व है...
लीक में सधो
सवाल मत करो
झुंड में रहो
                                                  झुंड में ही सहो                                                  
अकेली भेड़ खतरनाक है...
अकेले चलने वाले में
क्रांतिकारी होने का सत्व होता है...
भेड़ों को झुंड में रखा जाता है...
क्योंकि लोकतंत्र में झुंड का बहुत महत्व होता है...
वाद का
विवाद का
धर्म में अतिवाद का
या कोरे कट्टरवाद का
भेड़ों को किसी-न-किसी वाद से
हमेशा मजबूर रखना होता है
क्योंकि लोकतंत्र में हर वाद का बहुत महत्व होता है...
घुटी हुई उन चीखों में
पग-पग मिलते धोखों में
सिसक-सिसक कर रोने दो
उन मुर्दा बंद झरोखों में
आवाज़ छीन लो भेड़ों से
बोलने वाली भेड़
भेड़ियों के लिए खतरा होता है
क्योंकि लोकतंत्र में आवाज़ का बहुत महत्व होता है
वर्ण से और वर्ग से
या भाषाई संदर्भ से
खींच दो लकीरें
बंटवारे की
घर-घर
नफरत के गर्भ से
भेड़ों को साथ रखकर भी
अलग-अलग रखना होता है
क्योंकि लोकतंत्र में एक होने का बड़ा महत्व होता है...
कविता अभी ये अधूरी है
फिर भी पूरी सच्चाई का बोध होता है
ऐसा जरूरी भी है
और लाज़मी भी...
क्योंकि लोकतंत्र में बोध होने का बड़ा महत्व होता है
एक दिन ये अंधेर छंट जाएगा
है अगर वर्चस्व
तो घट जाएगा
नपुंसक भेड़ियों की क्या बिसात
भेड़ों के पास मर्यादा है
एक दिन उनका भी पुरुषत्व जग जाएगा
क्योंकि लोकतंत्र में मर्यादा का बड़ा महत्व होता है
बेशक
यहां अब भेड़ियों का वर्चस्व है...
लोकतंत्र में फिर भी
भेड़ों का बहुत महत्व है ।

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हेमन्त वशिष्ठ
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रविवार, 7 अगस्त 2016

थाह लेते चेहरे ...



कुछ चेहरे आपकी स्मृति में दर्ज हो जाते हैं, . . 
सिर्फ अपनी छवि के साथ नहीं, बल्कि अपने पूरे व्यक्तित्व के साथ... 
संदर्भ सिर्फ एक तस्वीर तक ही सीमित नहीं है...  जीवन रंग-बिरंगे परिधानों (बानों) ... सजीली पगड़ियों (साफों) ... रौबीली मूछों से आगे ... उन तमाम अनुभवों में अंकित होता है, जिसकी छाप गुज़रता वक्त गाहे-बगाहे आपके चेहरे पर दर्ज करता रहता है, आपकी आंखों में सहेजता रहता है... वो अनुभव उन आंखों में से आपको ताकता है... परखता है... आपकी थाह लेता है... कि आप ज़िंदगी से उस वक्त क्या चाहते हैं, बात सिर्फ aim...click n forget सरीखी है, या फिर ये वार्तालाप एक इंसान का एक दूसरे इंसान से है। आप एक इंसान को किसी वस्तु की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं (नहीं करना चाहिए) , लेकिन वर्तमान में वस्तुनिष्ठ होना ज़्यादा प्रोग्रेसिव (प्रगतिशीलता का द्योतक) है... व्यक्तिनिष्ठ होना... सत्यनिष्ठ होना... शायद थोड़ा पीेछे छूट गया है . . .

शनिवार, 6 अगस्त 2016

एक मुलाक़ात ...

Photo Courtsey: Kunal Chatterjee
तस्वीर वाले बाबा से मुलाक़ात पुष्कर में हुई, बाबा ने सिर्फ आशीर्वाद ही नहीं दिया, बातों-बातों में मानुष जनम के कई भेद खोलते चले गए ... आप मानो तो सब कुछ और आप न मानिए तो सृष्टि में सृजन तो अपनी गति से चलता ही रहेगा।
आस्तिक या नास्तिक... आस्था या अंधविश्वास ... ये सब मानव सृजित अवधारणाएं है। आपके विश्वास से न तो मौसम की प्रकृति बदलेगी और न ही आपके अविश्वास से पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमना बंद कर देगी।
मस्त रहिए... मलंग रहिए , बस अपनी ज़िम्मेदारियों और जरूरतों में सामंजस्य बना कर रखिए... ज़िंदगी अपने आप ज़िंदगी होती जाती है ... कोई संन्यासी बनकर जीवन जीता है तो कोई जीवन में संन्यासी बनकर रहता है, या फिर कोई मस्तमौला बेफिक्री से अपनी ज़िंदगी जीता है ... लेकिन ये फैसला आपका होना चाहिए ...क्योंकि ये जीवन आपका है।