मंगलवार, 7 सितंबर 2010

ऐसे में कोई क्या करे ?

" नहीं यार मैं नहीं पूछूंगा ...
मेरा मन नहीं मानता ...
ये उस टाइप का लगता ही नहीं है "...
--- ' ये कैसे कह दिया आपने '...
"कभी बातें सुनी हैं आपने इसकी "...
' कभी ... हां कभी कभी ही तो बोलता है ...
जाने कौन घमंड पाले है ससुरा '...
" ये वो टाइप नहीं है यार... हम कह रहे हैं...
हम लोगों का क्लास अलग है "...
--- 'अरे टाइप-वाइप को छोड़ो गुरु ...
ई टाइप के चक्कर में हमारा हाईप बनते बनते रह गया '.....
(हा हा हा !!! ... पांच-छह लोगों के झुंड का सामूहिक अट्टहास)
सुनो बे !... यहां आओ !!!...
और फिर उन्होंने उसे धर दबोचा
और शुरु हुआ उसका पोस्टमॉर्टम...
--- सुनो जी बताओ तो ...क्या तुम लेनिन को मानते हो ?
क्या तुम कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों पर चलते हो ?
" बोलो जवाब दो "
क्या तुमने कभी कोशिश की है पिकासो को समझने की ?
मॉडर्न आर्ट के बारे में क्या सोचते हो तुम ?
एब्स्ट्रैक्ट आर्ट की समझ रखते हो तुम !!!
थिएटर हां ...हां !!!
... क्या जानते हो तुम रंगमंच के बारे में ?
क्या किसी संगोष्ठी में बुलाया गया है तुम्हें ?
--- बताओ...बताओ ...
किसी सेमिनार...परिचर्चा, परिसंवाद...
कभी इनसे साबका पड़ा है तुम्हारा ?
.... सवाल तीखे हो चले थे...
और सोच बेस्वाद...
दायरा बढ़ता जा रहा था...
और घेरा तंग होता जा रहा था...
वो अब झल्लाने लगा था...
और वे ...
औऱ बेतकल्लुफ होते जा रहे थे...
" चे "... हां तुम पर चे का असर साफ दिखलाई पड़ता है...
तुम्हारी ये टीशर्ट ... ये चे ही है ना ...
दो लोगों ने वो टी-शर्ट उतार ली ...
और बेहद करीब से उसका मुआयना किया...
लेकिन फैसला नहीं कर पाए...
कोई बात नहीं ...
' वैसे शक्ल से ही तुम ' अमुक कैंपस '
के ढाबा स्कॉलर लगते हो...
मैं पहले ही ना कहता था..
ये वहां उसी लेट-नाइट ढाबे पर खूब ठहाके लगाते देखा गया है '
बहुत खूब ...
एक फुसफुसाया...
--- " जनाब अकेले नहीं थे...
साथ में मैडम भी थी...
और दोनों वो कोने वाली झाड़ियों ...
के आसपास मृदा संरक्षण, संवर्धन के उपाय खोज रहे थे..
प्रकृति को काफी नजदीक से पढ़ रहे थे "
कईयों ने एक साथ खींसें निपोरी...
स्याले !!! ####****####
(कुछ बेहद भद्दे शब्द... और ध्वनियां ... )
"तभी तुम किसी को भाव नहीं देते हो " ...हां !!!
भाव से याद आया...
अभी उसी दिन ये किसी को
शेयर मार्केट के टिप्स भी दे रहा था...
बाज़ार भाव का भी ध्यान रखता है शायद
और कई सारे ' हूं '... अचानक से सुनाई दिए..
बाज़ार... शेयर मार्केट...
जरुर ये अमेरिका जाना चाहता है !!!
अब यहां अमेरिका कहां से आ गया ?
क्या तुम्हारी हमदर्दी रुस से है ?
वाह बेटा !!! वो मारा पापड़ वाले को ...
तभी तुम गूगल पर हां .... लगे रहते हो ओ हो हो हो !!!
ऐं ... उसने प्रतिवाद किया..
वो अब नीतियों पर उतर आए...
गाज़ा पट्टी ... उसका क्या ?
वियतनाम को तुम जायज ही ठहराते होंगे ?
इराक के वैपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन..
वो कहां रखे हैं ?
कुछ जानते भी हो ...
या कोरी हवाबाज़ी करते घूमते हो ?
अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति के क्या मायने हैं बंधु...
फिर विदेश नीति...सहमत हो ... इसकी नरमाई से,
क्या कश्मीर समस्या का हल है तुम्हारे पास ?
पत्थर फेंकने वाले चेहरों का सच जानते हो ना तुम ?
पाकिस्तान का ट्रीटमेंट ...जहन में रखे हो या नहीं ?
---बोलो---
रेड ड्रेगन... हा हां चीन...
है उसका तोड़ तुम्हारे पास ?
अजी हां... तोड़ !!!
ससुरे अभी गिरे पड़े जाएंगे ...
ड्रेगन की एक पुकार पर...
कब्जे पे कब्जा ... है किसी की हिम्मत जो चूं भी करे जाके ...
लेकिन कौन जाएगा ... मैने तो हामी भी नहीं भरी ?
फिर कौन और क्यों ?
--- न्यूज़ चैनल खबर कम दिखाते हैं..
यही कहते फिरते हो ना तुम...
वो क्या कहते हैं उनकी भाषा में...
पिल पड़े हैं उस खबर पर...
खेल जाओ प्यारे इससे पहले कोई दूसरा उस खबर को उठा ले...
कुछ जानते हो क्या होती है ,
ब्रेकिंग न्यूज ... या फिर कुछ भी चला दो ?
फुल स्क्रीन ...
हुंह... लोग आखिर यूंही सालों धूप में बाल सफेद कर पत्रकार नहीं बन जाते हैं..
समझे या नहीं...
निराला को पढ़ा है तुमने,
जानते हो अज्ञेय को,
प्रेमचंद... टैगोर ,
औऱ शेक्सपीयर को कैसे भूल गए आप,
की़ट्स की शैली ... उसकी कल्पना शक्ति... वो रस...
अरे तुमने क्या कभी सुना है इलियट का नाम ...उनकी ख्याति ?
हां .... हां ...
अब वो बोला ....
हां !!! मैं जानता हूं इन सबके बारे में ... शायद...
लेकिन उससे आपका क्या वास्ता ???
देखो तो जरा ...
वो झुंड धीमे से गुर्राया ...
---तेवर अब भी पेले पड़े हैं जनाब ...
बेटा ..." हम वो हैं जो सबकी नेकराय को एकराय बनाते हैं "
मतलब ... वो हैरान था !!!
*** झुंड अब थोड़ा सा इनफॉर्मल हुआ....
उसके कानों में फुसफुसियाते हुए बोला...
"शामिल हो जाओ इस झुंड में...
आ जाओ हमारे साथ....
आओ मिलकर रच डालें एक और क्रांति ...
आओ बौद्धिक विचारों का हवा दें...
दिशा दें... इन्हें इकट्ठा करें ... उन पर हावी हो जाएं ...
औऱ सब पर थोप डालें अपना मत ... अपनी सोच "
--- ज्ञान झाड़ना बंद कर झुंड अब ...
उसे पुचकारने के मोड में दिखा...
" राय रखना सीखो गुरु "....
हर मुद्दे पर ... हर अड्डे पर...
ये ससुरी राय रखना बहुत जरुरी हो गया है ...
पिछड़ जाओगे ... वर्ना ... समझे ...
चलो अभी चलते हैं... आज अभी के लिए इत्ता ही ...
(औऱ ठहाकों के साथ कदम भी धुंधले होते चले गए ...)
और वो
वो रुआंसा हो आया...
ये पहली बार नहीं हुआ था ...
उसे समझ ही नहीं आया
कि आखिर क्यों हर मामले में राय रखना...
आजकल का फैशन होता जा रहा है ? ? ?

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