मंगलवार, 18 अगस्त 2015

हम नज़्म-नज़्म 'गुलज़ार' हुए ...

( जन्मदिन मुबारक गुलज़ार साहब
कुछ लिखा है, कुबूल हो ) ...

कुछ ख्वाब बुने
कुछ धूप मली
कुछ किस्सों से दो-चार हुए...
कुछ बातें पत्तों-बूटों से...
बादल-परबत किरदार हुए...
लिपटाए ओस की बूंदों को...
दिन भर बदरा के यार हुए...
जेबों में बताशे बारिशों के...
बादल-बादल हम सवार हुए...
तितलियों से सीखा जुनूं जीना...
शाम रंगों के कारोबार हुए
कुछ इश्क इबादत होठों पर...
हम नज़्म-नज़्म तैयार हुए
लम्हा-लम्हा हुई वक्त से यारी...
यूं लफ्ज़ों के 'गुलज़ार' हुए 
हम नज़्म-नज़्म 'गुलज़ार' हुए ...