सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

एक दीप आपके लिए



ये दीप
जो प्रज्जवलित है
हर देहरी
हर द्वार पर
है रौशनी का आह्वान
जीत हो
अंधकार पर
अहंकार पर
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ये दीप
आप सभी के लिए है
ये दीप
हम सभी के लिए है
ये दीप उन सभी के लिए है
जिनसे इसकी लौ बरकरार है
ये दीप
उन सभी के लिए है
जिन्हें रौशनी की दरकार है
अपनों के लिए है
बिछुड़ों के लिए है
ये दीप
ज़िंदगी के लिए है
सपनों के लिए है
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दीपावली शुभ हो
मंगलमय हो
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सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

ये कैसा बहिष्कार !!!


कनॉट प्लेस के इनर सर्किल में 10-12 युवकों का एक समूह नारे लगा रहा था ...
Boycott ... Made in China !!!
. . .और ये युवक लोगों से चीन के बने सामान का बहिष्कार करने की गुजारिश अपने ही तरीके से कर रहे थे। वहीं ... चीन के बने कपड़े...जूते...बेल्ट पहने, पर्स खोंसे - बैग थामे लोग... भरपेट चाईनीज़ खाने के बाद अघाते हुए चकाचक चाईनीज़ फोन निकाल कर धड़ाधड़ बड़े मेगापिक्सल वाली तस्वीरें खींच रहे थे और HD Video बना रहे थे।
लेकिन यकीन मानिए, ऐसा करने से पहले उन्होंने यकीनन तन...मन और धन से चीनी उत्पादों का बहिष्कार कर दिया था (ऐसा लगता जरूर था) ...यहां तक कि फोन में लगे चीन निर्मित अवयवों को भी शायद निकाल बाहर कर दिया होगा। 
(***और बहुत संभव है कि इन युवकों ने जो चीनी सामान के बहिष्कार के नारे वाली टी-शर्ट छपवाई हो; उसमें क्या मालूम ... बनने से छपने से लेकर पहनने तक ... किसी बेहद जरूरी या गैरजरूरी, महीन स्तर पर चीनी मिलावट की गई हो, जो आपको मालूम भी न हो...बेशक गैरइरादतन)
एक दौर था... जब आज़ादी के मतवालों ने स्वदेशी अपनाओ विदेशी भगाओ के असल मायने ब्रिटिश साम्राज्य को समझा दिए थे। देशव्यापी स्तर पर विदेशी विशेषकर अंग्रेज़ी कपड़ों की होली जलाई गई... अंग्रेज़ी सामान का बहिष्कार किया गया...एक आह्वान पर... स्वेच्छा से... अपने देश के लिए। 
आज... बेशक देवी-देवता हमारे हैं लेकिन उनकी मूर्तियां तक चीन से बनकर आ रही हैं, वो भी तरह-तरह के आकार-प्रकार में। दीपावली के दिए, जगमगाती लाईट्स, साज-सजावट... रंग-रोशनियां-उमंग सब कुछ धड़ल्ले से चाईनीज़ चल रहा है। आप किसका बहिष्कार करेंगे... किस-किस का बहिष्कार करेंगे और कैसे करेंगे ... घरों में, दफ्तरों में, आपके आस-पास... इलेक्ट्रॉनिक्स का ज़्यादातर सामान... तमाम चाइनीज़ मोबाईल ... चार्जर और एक्सेसरीज़।
इन सब का क्या करेंगे। इसके अलावा ऐसा बहुत कुछ जो शायद हमें पता भी नहीं है, ऐसा चीनी माल जो हमारे बीच चुपचाप खप रहा होगा... उसका क्या।
अब आप ही कहिए आप कैसा बहिष्कार चाहते हैं, और कैसे उसे अंजाम दिया जाएगा।
क्या आप यानी कि जनता सिर्फ सहूलियत का बहिष्कार चाहती है।
या जनता को ये समझाया जा रहा है कि वो ये चाहती है।
ये जनता आखिर चाहती क्या है।
ये जनता आखिर है क्या...
और सबसे अहम बात...
क्या ये सब जनता के सोचने भर से हो जाएगा। 
क्या फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप, ब्लॉग्स पर क्रांति करने से कोई समाधान निकलेगा !!! पता नहीं, लेकिन क्रांतिकारी जीव जुटे रहेंगे। 
या फिर इसमें किसी तरह के नीति-निर्धारण की जरूरत और गुंजाइश है ... और वो भी आखिर कितनी।
स्वदेशी आखिर कब तक और किस तरह से उस स्तर तक जा पहुंचेगा कि तमाम विदेशी संभावनाएं जड़ से ही समाप्त हो जाएं वो भी उस दौर में जब हम पूरे विश्व को स्वयं एक खुले बाज़ार की तरह देख रहे हैं। 
यह कितना स्वाभाविक... प्रासंगिक और तार्किक है...
जनता कृपया ध्यान दें ...
बाज़ार में चीनी उत्पादों की monopoly तो हमें कतई स्वीकार्य नहीं है, होनी भी नहीं चाहिए ... लेकिन बंधु स्वीकार्य तो हमें वैचारिक monopoly भी नहीं है ... क्या समझे !!!