मैं अपने कम्प्यूटर के मॉनीटर में मानो घुसा पड़ा था...
और वो जाने कब से चुपचाप...
सहमा हुआ सा...
मेरी कुर्सी के पास खड़ा था...
आंख उठा कर मैने देखा...
क्या बात है भाई...
धीरे से उससे पूछा...
पर वो मेरे सवालों को शायद सुन भी नहीं सका था...
दिन भर की थकान के बाद...
नाइट शिफ्ट में भी अखबारों का बोझा लिए...
वो शायद खड़ा-खड़ा ही सो रहा था...
अचानक कोई जोर से चिल्लाया...
औऱ रोबोट की तरह मुड़कर...
आवाज़ की दिशा में...
सोते हुए ही ...वो चल पड़ा था...
थोड़ी ही देर बाद...
एक डस्टबिन में उलझा...
वो फिर दिखलाई पड़ा था...
जमाने भर की गंदगी समेटता...
निर्लिप्त भाव से...
वो फिर दूसरे डस्टबिन की ओर चल पड़ा था...
तभी अचानक एक और आवाज़ का पीछा करते हुए...
वो रोबोटनुमा चाल से
फिर से सोते हुए चल दिया था...
इस बार वो हाथ में पैकेट थामे...
किसी का खाने का ऑर्डर लेकर आया था...
भूख से मेरी भी आंते कुलबुला रही थी...
औऱ खाने की महक से वो...
किसी तरह अपने को बचाए हुए था...
लेकिन इंसान था...
भूख दबा तो ली... पर छुपा नहीं पाया...
वो चुपचाप कोने में खड़ा होकर...
हंसते-मुस्कुराते...
कॉफी पीते...नूडल्स खाते...केक पर लपलपाते...
अपने ही जैसे इंसानों के झुंड को देख रहा था...
मेरी नज़र उस पर पड़ी तो वो....
झेंप सा गया...
तभी उस झुंड में से भी किसी ने उसे देखा...
दुत्कारा नहीं... पर उतना देखना भी बहुत था...
रोबोट की तरह फिर से वो उनके पास जा पहुंचा....
अब वो झूठन को समेट रहा था...
इसके बाद वो रातभर नहीं दिखा...
अगली रात भी नहीं...
किसी ने पूछने की जहमत भी नहीं उठाई...
किसी को कोई फर्क भी नहीं पड़ता...
मैं भी कुछ पल सोचने के बाद ...
फिर से अपने कम्प्यूटर के मॉनीटर में जा घुसा...
तभी लगा जैसे कोई मुझे बहुत करीब से देख रहा है...
सिर उठाकर मैने देखा...
बस चेहरा बदले...
आज वो दूसरा ऑफिस ब्वॉय था...
जो उसी वर्दी में...
उसी मुस्कुराहट को ओढ़े...
वो अपने काम में जुटा था...
बिल्कुल एक रोबोट की तरह...
स्वतंत्रा दिवस जी हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंबेहतर और संवेदना से युक्त...ना सिर्फ आपकी नजरें वो सब देखती हैं..जो बाकी नहीं देखते.. बल्कि उस दर्द को इतनी शिद्दत से महसूस भी करते हैं...जिससे कि वो कविता की शक्ल ले लेती है...।
जवाब देंहटाएंअपनी हालत का खुद एहसास नहीं है मुझको
जवाब देंहटाएंमैंने औरों से सुना कि परेशान हूं मैं...
काफ़ी अच्छा लिखा है