मंगलवार, 31 अगस्त 2010

बे-दिल दिल्ली ?

वो मर गई ...
पूरे चार दिन बाद ...
एक नवजात बच्ची को अकेला छोड़ कर...
शंकर मार्केट के एक फुटपाथ पर....
( हां वही शंकर मार्केट जो सीपी में है )
तो इसमें नया क्या है ?
हज़ारों मरते हैं ... फुटपाथ पर ....
कीड़े मकौड़ों की तरह ...
जीने के बाद ...
यूं ही बेचारगी की मौत ...
जिन पर मक्खियां भिनभिनाया करती हैं ...
इसका मरने का तरीका भी उतना ही घिनौना था ...
(लोग जाने क्यों ढंग से अब मर भी नहीं सकते )
जो कपड़ा इसने ओढ़ा था...
आदमी सूंघ ले तो बस ...
तस्वीर देख कर ही कईयों को उबकाई आ गई ...
हां ...
अखबार में इसकी फोटो छपी थी...
वो खुद उसे नहीं देख पाई ...
लेकिन मरते ही मशहूर हो गई ...
उसकी बच्ची ...
मां जिंदा रहती तो वो भी फुटपाथ पर ही रह जाती...
अब शायद कोई गोद ले ले ...
कई टीवी चैनलों पर खबर को जमकर ताना गया...
साथ ही...
जमकर कोसा गया ... बे-दिल दिल्ली को ...
(खबर जरा हट के थी भाई ... ह्यूमन एंगल ... भावनात्मक दोहन सरीखा कवरेज़ )
लेकिन दिल्ली वाले क्या करें...
क्योंकि ...
सड़क के दूसरी तरफ...
दिल्ली तैयार हो रही है...
सीपी के गलियारे चमकाए जा रहे है...
आईने सरीखी टाइलें लगाई जा रही हैं...
एकदम चकाचक ...
और जाने क्या क्या ...
इस तरफ की भिखारिन मरे या जिए ...
किसे परवाह है ...
वैसे भी,
कई दिन से फुटपाथ रोक कर पड़ी थी ...
वो जगह पानी से धो दी गई होगी ...
नहीं तो वापस लौटता मॉनसून...
दिल्ली वालों को निराश नहीं करेगा ...

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