शनिवार, 20 जुलाई 2013

अरसे से जैसे कुछ पता ही नहीं ...

अरसे से जैसे कुछ पढ़ा ही नहीं
अरसे से जैसे कुछ लिखा ही नहीं...
वक्त गुजरता रहा यूहीं बेसाख्ता...
अरसे से जैसे ...
... हमने जिया ही नहीं...
अखबार रद्दी बनते रहे...
धूल फांकती रहीं किताबें...
दोस्त फेसबुक पर मशगूल रहे...
कि ट्विटर,
थोड़ा सब्र कर ...
तुझे अभी समझा नहीं...
फिल्मों सरीखी चल रही है सांसें...
इंटरवल पता नहीं...
...है नहीं या हुआ नहीं...
मोबाइल पर मिलते रहते हैं
हर आम और खास के अपडेट
लेकिन
मेरा प्रोसेसर तो मेरे लैपटॉप सरीखा है...
आउटडेटेड हो गया...
और हमने अपडेट किया नहीं...
जिंदगी से निकलते जा रहे हैं इमोशंस
ताकि गैजेट्स और एप्स काबिल साबित हों
( मुझे तो ये MNC की साजिश लगती है)
खैर
 " जिंदगी से  निकलते / निकाले  जा रहे हैं इमोशंस
ताकि गैजेट्स और एप्स काबिल साबित हों "
हम खर्च कर बैठें हैं सारे लम्हें...
कि हमारी जेबों में कुछ बचा ही नहीं...
खरीद लेता था कभी कभी
शौकिया कुछ पत्र-पत्रिकाएं
मजमून देखकर उसके स्टॉल से
एक अरसा हुआ
अपने अखबार वाले तक से मैं मिला नहीं ...

6 टिप्‍पणियां:

  1. Mast Bhai.. Tumhe bahut hi dino baad padha hai.. maza aagay.. Waqt milte hi poora blog padhunga.. Keep writing :)

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  2. कभी कभी बिना पढ़े, बिना लिखे, बिना सोचे बहुत से एहसास हो जाते हैं ... शायद इसी का नाम ज़िन्दगी है.

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  3. @ मैडम श्रुति नागपाल जी ... धन्यवाद ... शायद यही अहसास हैं जो जिंदगी हैं ... और शायद इसी जिंदगी का नाम अहसास है ...

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  4. Haan Bhai Bilkul, I hope you have saved my number (9971174144).. Lets meet next weekend; if that suits you ?

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  5. @ Divay numbr saved ... bt i hv no off on weekends ,so lets see wen possbl to meet... shall talk n plan accordingly...

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