वो खुद को गरीब महसूस करता है...
क्योंकि जब वो भीख मांगने को बढ़ा हाथ देखता है...
औऱ जेब से जब निकालता है ...
एक अदद ब्रांडेड पर्स...
तो उसमें 100-100 के 10-15 नोट ही पड़े होते हैं...
काश ये 1000 रुपए के नोट बन जाते...
पलक झपकते ही...
ये सोचते हुए वो...
भिखारी को एक की बजाय दो रुपए देकर आगे बढ़ जाता है...
(नाक-भौं सिकोड़ना लाजमी है)
वो खुद को गरीब महसूस करता है...
क्योंकि जब वो रोज़ ऑटो से सफर करता है...
तो दिन के ढेरों सपनों के साथ देखता है...
उस धक्का स्टार्ट ऑटो को...
फर्राटे से पीछे छोड़ती...
लम्बी-लम्बी गाड़ियों को...
जिनके एसी की कूलिंग पावर...
वो अचानक बाहर तक ...
ऑटो में भी महसूस करता है...
औऱ कुछ पल भूल जाता है...
चेहरे को डीप फ्राई करते...
लू के थपेड़ों को...
औऱ अपना मनपसंद गाना गुनगुनाते हुए...
ऑटो वाले को कहता है...
पता नहीं तुम लोग मीटर से क्यों नहीं चलते...
और थोड़ा तेज़ चलाओ...
मैं लेट हो रहा हूं...
(गाने का मुखड़ा खत्म होने पर... थोड़ी सी झल्लाहट के साथ)
वो खुद को गरीब महसूस करता है...
जब वो किसी 5-स्टार होटल के सामने से गुजरता है...
जहां वो रोज़ जाना चाहता है...
छू कर देखना चाहता है ...
उस ज़िंदगी को...
बेहद करीब से...
जीना चाहता है...
सुना है वहां सब इंतजाम होते हैं....
उस दिन वो घुस जाता है...
अपनी जेब से जरा से उपर रेस्त्रां में...
और पूरा महीना फिर वो दिन
... वो भूल नहीं पाता है...
(कोसता है... उस पल को..उस फैसले को...)
वो खुद को गरीब महसूस करता है...
जब वो एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में ...
एक उंचे से फ्लोर पर बने अपने ऑफिस में होता है...
उस उंचाई से ...
दिन में कई बार नीचे झांकता है...
नीचे बसी झुग्गियों को हिकारत से देखता है...
लेकिन अपने से उपर के फ्लोर पर जब जाता है ध्यान...
तो वो...
मायूस सा हो जाता है...
भले ही लिफ्ट से कुछ सेकेंड लगते हैं...
लेकिन एक फ्लोर भर का फासला भी...
अक्सर एक पूरी उम्र ले लेता है...
(उसके बाल अभी से सफेद होने लगे हैं...)
वो खुद को गरीब महसूस करता है...
जब वो देखता है...
एक परले दर्जे के बेवकूफ को...
बॉस के सामने....
बेवकूफी की नई-नई मिसालें पेश करते हुए...
उसके आदर्श...
वो वहीं भूल जाता है...
जब वो देखता है...
उसका ही एक साथी...
एक कुत्ते की तरह जीभ निकाले....
खीसें निपोर रहा है...
औऱ दूसरा इंतजा़र में खड़ा है...
कब पहले वाला हटे...
तो वो भी चाटुकारिता का कोई नया अध्याय लिख सके...
और वो खुद पूरे मन से जुटा है...
अपना काम करने में...
उसकी ईगो को अच्छा लगता है...
वो एक सनकी की तरह सब इग्नोर कर देता है...
(वैसे ये चमचा बनना भी कोई आसान काम नहीं है)
वो खुद को गरीब महसूस करता है...
जब वो हाई-फाई अंग्रेजी बोलती लड़कियों को देखता है...
आईने के सामने ...
वो भी कई बार हाथ हिला-हिलाकर ...
वैसे ही बोलने की कोशिश करता है...
लेकिन आईना कमबख्त झूठ भी तो नहीं बोलता...
उसकी गरीबी और बढ़ जाती है...
जब वो उन लड़कियों के साथ...
अब कुछ लड़कों को भी देखने लगता है...
जो वैसे ही हाथ हिला-हिलाकर बात कर रहे हैं...
एक गरीब को गुस्सा भी बहुत आता है...
लेकिन वो गुस्से को पीना भी सीख जाता है...
(सब जवानी के चोंचले हैं... )
वो खुद को बहुत गरीब महसूस करता है...
जब वो देर रात काम से घर लौटता है...
अगले दिन का डे-प्लान...
उसके दिमाग में दौड़ रहा होता है...
औऱ वो देखता है...
एक हैप्पी डिनर के बाद...
शहर की सड़कों पर निकले...
लोगों को...
कई परिवार के साथ... हैं...
जिनके बच्चे गुब्बारे खरीदने की जिद कर रहे होते हैं...
एक पल को वो भी बच्चा बन...
गुब्बारे खरीदने को मचल जाता है...
फिर वो आईसकीम शेयर करते कुछ जोड़ों को देखता है...
उसे लगता है वो बचपन से सीधा बुढ़ापे में प्रमोट हो गया है...
लगता है जैसे ज़िंदगी जी नहीं है... बस किसी तरह बिता दी है...
लेकिन उनकी बातें वो रस ले-लेकर सुनता है...
कुछेक यादों को वो...
फिर अपने तरीके से मैन्युपुलेट कर...
खुश होने का ढोंग रचता है...
औऱ जैसे ही हंसने की कोशिश करता है...
पेट में आंतें कुलबुलाने लगती है...
और उसे याद आता है कि काम की आपाधापी में...
आज वो फिर से लंच कर ही नहीं पाया...
वो अपनी गरीबी भूल जाता है...
अब उसे भूख सताने लगती है...