शनिवार, 4 सितंबर 2010

वो सिर्फ एक शरीर है ...

एक अजीब सा गुनगुनाता हुआ सन्नाटा ...
सामान्य होने की कोशिश करती सांसें...
औऱ चेहरे पर जैसे उदासी की भाप लिए...
22 साल की वो ...
और उसका साथी ....
पुरानी ब्लैक एंड व्हाईट फिल्मों सरीखा...
फुल स्पीड से लहराता सीलिंग फैन...
और नीचे लेटी उस लड़की के शरीर पर...
प्रकाश और छाया का अद्भुत खेल...
साथ ही समानांतर दौड़ते...
उमड़ते भाव ...
तभी सन्नाटे को चीरती एक उद्घोषणा ...
औऱ किसी शापित आत्मा सी वो खिंची चली गई...
उस दिशा में ...
जहां से पुकारा गया उसका नाम...
लेकिन वो अभी भी वहीं थी ...
बेसुध...बदहवास ... निरीह सी ...
कातर निगाहों से जहां वो ...
उस कमरे की ...माफ कीजिए...
ग्रीन रुम की दीवारों को ... छतों को ...
जाले लगे कोनों को ...
पपड़ाती सफेदी...
सस्ते फिनाइल से गंधाते फर्श को ...
साक्षी मान कर कुछ तय कर चुकी थी ...
जहां वो रिवाइंड मोड में थी ...
अचानक एक जाने पहचाने स्पर्श से ...
वो लौट आई...
वापस इस दुनिया में ...
स्पर्श रुखा था... बेजान... एकदम अजनबी सा...
लेकिन हाथ...
जरुर उस हाथ की रेखाओं को पहचानता था...
उसका दिल डूबने लगा...
लेकिन सिर को ज़ोर से झटक कर उसने...
एक लंबी सांस ली ...
विचारों को विराम देकर ...
अपने साथी को देखा... जो उसका हाथ थामे खड़ा था...
और फिर उसने सुनी पर्दे के पार से ...
वो आवाज़ें... जो कब से उसका इंतज़ार कर रही थी ...
फेड इन होते संगीत ...
और मद्धम-मद्धम प्रकाश की विविधताओं के साथ...
वो अब स्टेज पर थी ...
अब वो लहरा रही थी ...
चंद लम्हों पहले पहने पहियों वाले जूतों...
और उस हाथ के सहारे ...
जो अब भी एक दम बर्फ सरीखा था ...
और वो उससे लिपटा था एक मुर्दे के समान ...
उनके शरीर ... अब उनके नहीं थे...
तमाम हालात के बावजूद...
वो अब उस संगीत के सम्मोहन में थे...
वो उन तालियों के अधीन हो चले थे...
जो कुछ ना जानते हुए...
विस्मय से देख रही थी...
ध्वनि... प्रकाश ... संगीत और
मानवीय परिकल्पना के इस अद्भुत सम्मिश्रण को...
लेकिन लड़की का दिमाग अब भी ...
वहीं था ...
ग्रीन रुम के उसी
साथी के हाथों की कसक...
अब नहीं थी...
उसे सबकुछ एक मशीन सरीखा लग रहा था...
वो हाथ अब उसे कष्ट पहुंचा रहे थे ...
उसे याद आ रहा था ...
हर लिफ्ट पर जब वो उससे लिपट जाती थी ...
जब वो उसे दोनों हाथों से ...
अपने सिर से उपर उठा लिया करता था ...
स्टेज पर आखिर उनका साथ काफी पुराना था ...
लेकिन...
उसे डर लग रहा था...
कहीं वो जिंदगी की ही तरह...
यहां भी दगा ना दे दे ...
फिर भी...
नृत्य में लोच बरकरार थी ...
साथ ही...लोगों की उत्सुकता भी...
मन के भीतर चलता द्वंद्व...
औऱ उसकी अकुलाहट...
अब स्टेज पर भी दिखने लगी थी ...
क्योंकि स्टेज को पूरा कवर करने की बजाय...
अब वो बीच में ही
गोल-गोल घूम रहे थे...
स्पॉटलाइट की रोशनी में ...
लड़की के आंसू ...उसके मेकअप को ...
कभी का अपना बना चुके थे...
वो अब हसरतों के साथ...
अपने साथी के चेहरे को देख रही थी...
उसके दिमाग में क्या चल रहा है...
वो अब तक नहीं पढ़ पाई थी ...
उसे तो विश्वास भी नहीं हुआ...
जब उसके साथ ने उससे कहा ...
वहीं उसी ग्रीन रुम में ...
जिसे वो स्टेज तक खींच लाई थी ...
कि वो खो चुकी है अब...
उसका लगाव..
(और अपना शरीर ... मन ... और सारे अधूरे सपने )
वो नहीं है इंटेलेक्चुअली उतनी चैलेंजिंग...
जैसा उसने सोचा था ...
उसमें अब वो कशिश नहीं रही ...
आखिर रहती भी कैसे ...
आखिर कुछ भी उससे अछूता जो नहीं था ...
जाने उसका ही मन लड़की से अछूता कैसे रह गया...
गांव से आया एक लड़का ...
कैसे इतना प्रबुद्ध... इंटेलेक्चुअल ... बन गया
वो सब उसी रिवाइंड मोड में चलता चला गया ...
औऱ उसे पता नहीं चला ...
वो पीठ के बल स्टेज पर पड़ी थी ...
आंखों की पुतलियां एक तरफ घुमाईं..
तो उसे लोगों की तालियां दिखाई पड़ने लगी ...
वो संज्ञाशून्य सी ... कुछ नहीं सुन पा रही थी ...
दूसरी तरफ ... उसके जूतों के पहियें...
उसके पैरों का साथ छोड़ कर...
वहीं पास ही में पलटे हुए ... स्टेज को खरोंच रहे थे...
औऱ वो महसूस कर रही थी ...
दूर जाते हुए कदमों के कंपन को...
लोग मंत्रमुग्ध थे...
परफॉर्मेंस के इस पटाक्षेप पर ...
उनके लिए ये कुछ नया था ...
थोड़े से ड्रामे के साथ...
एक नया एंड...एक नए ट्रेंड की शुरुआत सा...
और लड़की की आंखें उस पर टिकी स्पॉटलाइट से जा मिली थी ...
उसकी आंखों की पुतलियां फैलती जा रही थी ...
और वो फिर से उसी ग्रीन रुम में जा पहुंची थी ...
प्रकाश औऱ छाया के उसी अद्भुत खेल के बीच...
जहां वो सालों से सिर्फ एक शरीर थी ...

3 टिप्‍पणियां:

  1. Beautiful....

    lagta hai gulzaar sahab ka adhunik version padh raha hun ...

    beautiful

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  2. शुक्रिया... शुक्रिया ... रुकने, ठहरने, पढ़ने, समझने और सराहने के लिए ... कोशिश भर है लिखने की ... आप दोनों का शुक्रिया

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