मंगलवार, 25 अगस्त 2009

चैन की सांस ...

शाम को जब पापा ऑफिस से वापस आए...
हाथ से टिफिन लेने मैं बढ़ा...
कि अचानक उन्होंने ...
ज़ोर से छींक दिया...
हाथ बढ़ते-बढ़ते रुक गए...
कदम जैसे वहीं थम गए...
मैं किसी बहाने से...
वापस कमरे में आकर बैठ गया...
पापा वहां आए...
मेरी आंखों में तैरते संशय को...
शायद वो भांप गए...
औऱ मुस्कुरा कर दूसरे कमरे में जाकर आराम करने लगे...
मैं भी जबरदस्ती व्यस्त हो गया...
शाम हो चुकी थी...
घूमने के बहाने मैं घर से निकला...
कहीं अकेले ही चले जाना चाहता था...
क़ॉलोनी में पीछे की तरफ बना पार्क...
मुझे सबसे मुफीद लगा...
कदम उसी तरफ बढ़ चले...
लेकिन जब वहां पहुंचा...
तो वो भी वहीं थी...
तब याद आया...
आज मिलना तय हुआ था...
उसकी आंखों में शिकायत थी...
औऱ होठों पर एक गुजारिश...
वो पास आई...
सांसे मिलने को ही थी...
कि मैं फिर ठिठक गया...
वो आवाज़ देती रही ...
लेकिन मैनें पीछे मुड़कर भी नहीं देखा...
सीधा घर जाकर रुका...
रात हो चली थी...
मां ने खाने के लिए आवाज़ लगाई...
खाना परोसते वक्त देखा...
मां को हल्का बुखार था...
शायद सिरदर्द भी था...
खाना उसी हालत में बनाया गया था...
लेकिन थाली जैसे मेरे हाथों से छूटते-छूटते बची...
खाना जैसे मैने बेमन से निगला...
जल्दी से हाथ धोकर...
चादर तानकर सो गया...
मां-पापा ने इसे भी बड़ी सहजता से लिया...
कुछ नहीं कहा...
बस मुस्कुरा कर कहा गुडनाइट...
सुबह मैं देर से उठा...
ताकि मेरे पास नाश्ता करने का भी वक्त ना हो...
उस दिन लंच लाना मैं जानबूझकर भूल गया...
ऑफिस पहुंचा...
जो भी मिला...
सबने बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया...
पर मैं झिझकता रहा...
एक फीकी मुस्कुराहट के साथ...
सबसे मिला...
बातें की...
और जैसे ही मौका मिला...
तुरंत जाकर साबुन से हाथ धोए...
तब कहीं चैन की सांस ली...
स्वाइन फ्लू थमने का नाम नहीं ले रहा है...
कोई भी चांस लेना ठीक नहीं है...

1 टिप्पणी:

  1. ये क्या बात हुई आप हमे भी डरा रहे हैं अब आपको कम्मेन्ट दे कर हमे भी हाथ धो लेने चाहिये क्या पता?------

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