Dear Maggi . . .
. . . जिंदगी कब करवट बदल ले पता
ही नहीं चलता। पिछले कुछ दिन जितने तुम पर भारी रहे हैं यकीन मानो किसी आदत को
एकदम से छोड़ देना भी उतना ही कष्टकारी है।
पहले तो भरोसा ही नहीं हुआ,
कि दो मिनट में तैयार हो जाने वाली मैगी का भरोसा भी दो ही मिनट में टूट जाएगा।
हालांकि सब जानते हैं, ना तो तुम दो मिनट में तैयार होती हो और ना ही ये सारा खेल दो
मिनट में सिमट जाएगा। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है... चलने दो।
अगर तुम्हारा
दामन पाक-साफ है तो फिर तुम्हें कोई छू भी ना पाएगा, अगर किसी ने तुम्हारे खिलाफ
साज़िश की है तो भी भरोसा रखो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। औऱ अगर ये
तुम्हारा अस्तित्व मिटाने का खेल है तो भी भरोसा रखो। झूठ के पांव नहीं होते
हैं... और यकीन मानो सच हमेशा सच ही रहता है।
लेकिन हां... अगर तुमसे
गलती हुई है तो उसे स्वीकार करो, पूरी जिम्मेदारी के साथ। भरोसा रखो, हम
हिंदुस्तानी सब माफ कर देते हैं, सब कुछ। हमारी सोच जितनी विस्तृत औऱ संकुचित है
समान रूप से हमारा हृदय भी उतना ही उदार है।
स्वाद के साथ अगर तुमने
सेहत की तुकबंदी की थी, तो फिर उस पर खरा उतरना था, हालांकि आजकल वायदे कर तो दिए
जाते हैं लेकिन उन्हें निभाते वक्त इंसान की हकीकत मालूम होती है, तुम तो फिर भी
एक ब्रांड हो ... इतना बड़ा ब्रांड कि उसके आगे वायदे, भरोसा, सेहत... सब अदना सा
होता चला जाता है उस इसान की तरह जिसका भरोसा फिलहाल तो टूटा सा लगता है।
कोई कह रहा है कि ये माओं
का आलस है जो मैगी घर-घर तक जा पहुंचा... अब बताओ भला।
किसी का कहना है कि साल भर
की उसकी मेहनत है जो सेहत से इस खिलवाड़ का खुलासा हो पाया...
कहीं बात हो रही है कि
ब्रांड मैगी को मरने नहीं देंगे, ब्रांड क्या इंसान से बड़ा हो गया जी...
कहीं मैगी पर रोक लगा दी गई
है तो कहीं उसका स्टॉक वापिस लिया जा रहा है...
कहीं मैगी पर बैन के खिलाफ
अर्जी दी जा रही है...
इस बीच स्वदेशी मैगी उर्फ
हर्बल नूडल्स की मांग और ब्रांडिंग पूरे शबाब पर है। मांग और आपूर्ति की परिकल्पना
यही तो है।
हर्बल मैगी का स्वरूप आखिर
कैसा होगा, क्या वही स्वाद होगा, क्या वही हवा में तैरती महक होगी जो आपकी भूख को
और बढ़ा देती थी... क्या वही दो मिनट का इंतज़ार होगा। क्या फिर से वो भरोसा कायम
हो पाएगा। सेहत और स्वाद का एक होना क्या वास्तव में संभव है या फिर ये एक कवि की
कल्पना से भी इतर कोई अस्तित्व है।
पर मैगी... डियर मैगी ...
तुम घबराओ मत। हो सकता है बहुत जल्द तुम पर लगे सारे आरोप किसी समझौते या संवाद के
तहत खारिज कर दिए जाएं। और एक नए सिरे से सेहत और स्वाद को मद्देनज़र रखते हुए
(उम्मीद है) तुम्हारी री-ब्रांडिंग की जाए। और अगर ऐसा नहीं भी होता है तो हम दो
मिनट का विकल्प ढूंढने और ठूंसने में तुमसे भी कम वक्त लेंगे। बाज़ार में विकल्पों
की कमी नहीं है, कभी-कभी तो विकल्पों की जरुरत और मार्केट दोनों बनाए जाते हैं और
साम, दाम, दंड, भेद सब कुछ अपनाया जाता है, यकीनन तुमने भी किसी ना किसी स्तर पर
ऐसा जरूर किया होगा। फिर एक दिन एक नया विकल्प आएगा और हमें पता चलेगा कि जिस
विकल्प को हमने तुम्हारी जगह दी थी वो भी उसके कतई लायक नहीं था। फिर हम एक नया
विकल्प खोज निकालेंगे।
ये लापरवाही है, गलती है या
फिर मुनाफा कमाने के चक्कर में जानबूझकर मानकों औऱ सेहत के साथ खिलवाड़ किया गया।
ये सच तो एक दिन सामने जरूर आएगा।
लेड का स्वाद कैसा होता है,
ये हमें पता नहीं मैगी लेकिन उससे नुकसान क्या है ये अब जरूर पता चल गया है, MSG का खेल कैसे खेला जाता है
ये भी नहीं पता, लेकिन इन सबकी भरपाई हम कर रहे हैं। स्वाद के नाम पर सेहत भी दे
दी...वो भी बस दो मिनट के फेर में।
लोग कह रहे हैं कि हमारे
रोज़ाना इस्तेमाल की चीजों में औऱ भी खतरनाक तत्व मिले हुए हैं या मिल जाते हैं या
मिला दिए जाते हैं। कहीं कोल्ड-ड्रिंक्स में पेस्टीसाइड्स की बात आती है, कहीं
मिलावटी तेल का मसला है, नालों के पानी में पनपती सब्ज़ियां रोज़ाना खाई-पकाई जा
रही हैं, केमिकल्स से पकाए गए फल किसी को कैसे सेहत दे सकते हैं। कहीं अनाज, दालों
में आर्सेनिक मिल रहा है, तो कहीं रोज़ अंडे खाने पर भी अब सोचना पड रहा है।
जगह-जगह मिलावटी और दूषित खाद्य सामग्री की चर्चा और इस्तेमाल, इंसान मिलावट का
शायद आदी हो चला है।
एक तरफ तो मैगी ने
उपभोक्ताओं के मन में संशय डाल दिया है तो दूसरी तरफ मैगी पर भरोसा करके उसका
प्रचार करने वाले भी नूडल्स के फेर में उलझे नज़र आ रहे हैं। यकीनन बात सेहत और
स्वाद की ही रही होगी तभी एक भरोसे के साथ एक भरोसे का प्रचार-प्रसार होता है।
पैसा कहीं शामिल नहीं रहा होगा, सिर्फ पैसा मेरा मतलब है, शायद खुद का अनुभव भी
प्रेरक रहा होगा। या फिर कोई ऐसा एग्रीमेंट होता होगा जो पैसों में ही लिखा जाता
होगा। पैसा यानी मनी... अब यहां भी ब्लैक और व्हाईट खोजेंगे तो मामला बहुत भटक
जाएगा। कहीं कोई अमिताभ बच्चन से सफाई मांग रहा है तो कोई माधुरी से मैगी खाने का
हर्जाना मांगने पर तुला है। क्या ये सितारे फिल्मों में जो भी कुछ करते हैं आप आंख
मूंदकर वो सब अपनी ज़िंदगी में करने लगते हैं, एक आम आदमी की ज़िंदगी में क्या
इतनी गुंजाइश होती है। आम आदमी आजकल बहुत जागरुक हो गया है लेकिन ये जागरुकता
क्षणिक और भौतिक ज्यादा हो गई है शायद।
किसी उत्पाद के दावों की
सत्यता को परखना इन सितारों का काम होना चाहिए या सरकार का। या फिर सभी हमारी ही
तरह एक धोखे का शिकार हुए हैं। और ये धोखा यकीन मानिए असली वास्तविकता है, उत्पाद
का नाम और धोखे का स्तर शायद बदलता रहता है। अगर इन खबरों में लेशमात्र भी सच्चाई
है तो ये भरोसा तोड़ने से भी बड़ा गुनाह है... ये गुनाह एक पूरी पीढ़ी के
स्वास्थ्य के साथ है, इस गुनाह की व्यापकता को ज़रा देखिए... एक पूरी पीढ़ी।
खुशियों की रेसीपी ... दो मिनट की खुशियों की
रेसीपी, कहीं किसी की मां को अपना बनाती रही, और जाने कहां- कहां दो मिनट में
खुशिया बनाती रही। हम सबकी मैगी की अपनी – अपनी कहानी रही है, हां भई है बिल्कुल
है यकीन मानो, क्योंकि मैगी की एक कहानी मेरी भी है, पर ये ना किसी पैक पर है, ना कभी टीवी पर आई और ना ही किसी को
सुनाई गई। ऐसा मैने टीवी पर एक एड फिल्म में देखा था, लेकिन मेरी मैगी की कहानी
मेरे पास रही। ये कहानी एक चैनल में काम करने वाले एक प्राणी की थी, जो कभी – कभी घर
से लाया हुआ खाना नहीं खा पाता था। खाना जिसे पूरे दो घंटे में तैयार किया जाता था
उस खाने के टिफिन पर दो मिनट की मैगी वाकई खुशियों की रेसीपी बन कर आती थी। पूरी
शिफ्ट के बाद मैगी खाने में एक अलग ही आनंद आता था, पता नहीं झा जी मैगी में क्या
डालते थे (यहां लेड और MSG की बात नहीं हो रही है), दिनभर की सेहत और स्वाद की शायद
भरपाई हो जाती थी। झा जी का पूरा नाम क्या है कभी मालूम नहीं हुआ , शायद जरूरत ही
नहीं पड़ी ना उन्हें बताने की ना हमें पूछने की। बस उनकी बनाई चाय और मैगी से
वास्ता बना रहा। एक दिन उनको भरोसे में लेकर उनकी रेसीपी जानने की कोशिश भी की, और
फिर उनके बताए तरीके से खुद का हाथ आजमाया, लेकिन वो स्वाद नहीं आया।
और ये कोशिश उस
दिन तक जारी थी . . .
शानदार लेख:)
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