रविवार, 26 जुलाई 2009

बाबा के दर्शन...औऱ घर वापसी


सुबह जब आंख खुली तो एक अरसे बाद या कुछ यूं कहें कि बहुत अच्छा महसूस हुआ... ये सुबह वाकई सुबह की तरह थी... नीला आसमान... सूरज के आने के आभास से शर्माया सा... देख कर वाकई ऐसा लगा कि ... ये नया रंग कौन सा है... खैर... इसके बाद नज़र पड़ी चारपाई की बगल में रखी मेज़ पर... वहां रखी थी कोल्डड्रिंक की एक खाली बोतल... रात का सफर फिर से दिमाग में ताज़ा होने लगा तो याद आया कि रास्ते में एक दुकानवाले को कहा था माज़ा दे दो... तो उसने एक बोतल थमा दी... अब ना तो लाइट थी और ना ही कोई दूसरी रोशनी... लिहाजा चुपचाप गटागट पी भी गए... स्वाद भी कुछ जाना-पहचाना सा ही लगा । उसी बोतल को जब रोशनी में देखा तो उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था... जयंती कोला... Be Indian Buy Indian . आसपास पूछा तो पता चला कि भई यहां तो यही ब्रांड मिलता है। हम तीनों भाई एक दूसरे की शक्लें देखकर हंस पड़े और तुरंत उठ खड़े हुए।
सुबह-सुबह का वक्त था लिहाजा दिशा-मैदान के लिए निकल पड़े । एक अर्सा हो चला था इस तरह खेतों की तरफ मुंह उठाए चले... सब कुछ एकदम परफेक्ट था... आसमान जितना नीला होना चाहिए उतना ही नीला और साफ था... ना कम ना ज़्यादा... हरियाली भी एकदम सुकून देने वाली फिर चाहे वो मन हो या आंखें... दूर-दूर तक नज़र आते खेत...और उन खेतों का सदुपयोग करते लोग। हम भी उन्हीं में जाकर शामिल हो गए।
सुबह की हमारी इस सैर में करीब एक घंटा लग गया। अब हम जल्दी से तैयार होकर निकल पड़े। करीब डेढ घंटे का सफर था और रास्ता बेहद खूबसूरत... कहने को राजस्थान लेकिन हरियाली जैसे दिल को छू गई। गांव की सुबह क्या होती है...इस सफर ने एक बार फिर से वो यादें ताज़ा कर दीं।
खाटू धाम जाते हुए रास्ते में पड़ता है रींगस...जो सबसे पास का रेलवे स्टेशन भी है। रींगस से जब हम खाटू धाम की तरफ निकले तो रास्ते में अनेकों श्रद्धालु मिले जो पैदल ही बाबा के दर्शनार्थ खाटू धाम की तरफ बढ़े चले जा रहे थे। वक्त तो सुबह का था लेकिन धूप और गर्मी पूरे जोरों पर थी... ऐसे में नंगे पांव तपती सड़क पर चलना... ये सिर्फ भक्त और भगवान ही समझ सकते हैं। ...
जैसे-जैसे हम खाटू धाम के नज़दीक पहुंच रहे थे... धड़कन की रफ्तार बढ़ने लगी थी... औऱ जैसे ही खाटू धाम के द्वार पहुंचे... नतमस्तक हो गए। आस्था का अहसास...वाकई शब्दों में उसका वर्णन संभव नहीं है। इंसान अच्छे-बुरे सभी पलों ...सभी कर्मों को बरबस ही याद कर उठता है... और फिर ईश्वर से मांगता है इंसाफ... ऐसा इंसाफ जिसमें फैसला सुनाने से पहले उसकी जिंदगी के सभी पहलुओं को ध्यान में रखा जाए... और यकीन मानिए ...ऐसा होता भी है।
खाटू नगरी है श्याम बाबा की... भीमपुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की... जिन्हें खुद भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि कलियुग में उन्हें मेरे नाम यानि श्याम नाम से पूजा जाएगा। धर्म की रक्षा के लिए अपने शीश का दान करने वाले वीर बर्बरीक...यानि श्याम बाबा को शीश के दानी भी कहा जाता है। वीर बर्बरीक ने हारे का सहारा बनने की प्रतिज्ञा की थी... औऱ जब वो अपनी इस शपथ के साथ महाभारत के युद्ध में पहुंचे को उस वक्त पलड़ा पांडवों का भारी था... श्रीकृष्ण ये अच्छी तरह जानते थे कि अगर वीर बर्बरीक मैदान में उतरे तो फिर पांडवों की हार निश्चित है... लिहाजा धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने वीर बर्बरीक से शीश का दान मांगा जो उन्हें मिला भी... और साथ ही वीर बर्बरीक को मिला श्याम नाम...
इन्हीं श्याम बाबा की नगरी में जब एक अर्से बाद मैं पहुंचा ...सब कुछ जाना-पहचाना सा ही लगा। जल्दी से हम तीनों भाई श्याम कुंड पहुंचे... यहां भी भक्तों का तांता लगा हुआ था... बच्चे तो बच्चे बड़े भी श्याम कुंड में अठखेलियां कर रहे थे... गर्मी का मौसम...उस पर कुंड का शीतल जल... औऱ भक्तिमय माहौल...रह-रहकर लगते जयकारे....निकलने का मन ही नहीं कर रहा था... लेकिन वापस भी तो लौटना था...स्नान के बाद हम सीधा पहुंचे श्याम बाबा के दर्शनार्थ... कहते हैं कि मेले के दौरान खाटू में पग धरने भर जगह भी नहीं मिलती है... जब इस वक्त इतनी भीड़ थी... तो मेले के वक्त का अंदाजा हमें खुद ही लग गया। बच्चे...बूढ़े...जवान... सभी के होठों पर श्याम नाम...
आराम से बाबा के दर्शन हुए... इतनी देर से बुलाने के लिए ज़रा सी शिकायत औऱ फिर से जल्द बुलाने की कामना ... भक्त और भगवान के बीच इतना संवाद अक्सर बिना किसी औपचारिकता के हो जाया करता है... दर्शन...फरियाद औऱ परिक्रमा करते हुए हम सभी मंदिर से बाहर आ गए ...जहां से हम पुराने श्याम मंदिर की ओऱ बढ़ चले। यहां भी इत्मिनान से बाबा के दर्शन हुए।
दर्शन के बाद हम बाज़ार में आ गए औऱ घर ले जाने के लिए वो सब चीज़े ढूंढने लगे जिनकी लिस्ट घर से निकलते वक्त मुंहजुबानी थमाई गई थी। लॉकेट...कड़ा...तस्वीरें...किताबें... भजनों की सीडी... सब कुछ हमने जल्दी...जल्दी ढूंढा। एक बार फिर से जाकर दुकान से प्रसाद भी लिया।
मन तो कहां करता है लेकिन घर भी लौटना था... लिहाजा एक बार फिर से हम सभी बाइक्स पर सवार हुए और चल पड़े... जल्दी बुलाने की फरियाद और जल्द लौटने के वायदे के साथ... श्याम बाबा का आशीर्वाद लिए हम बढ़ चले।
भाई के मित्र को वापस उसके गांव जुगलपुरा छोड़कर हम लोग अपने रास्ते बढ़ चले। औऱ हां... खाना तो जुगलपुरा में खाना ही पड़ा। हमनें कितना कहा कि अब देर हो रही हो...लेकिन खाने के लिए कभी देर नहीं होती। ...खैर... वापसी का सफऱ भी इतना आसान ना था... धूप कड़ाके की थी... औऱ सूरज एकदम सिर पर...ऊपर से बेरहम लू के थपेड़े।

रास्ते में वही अरावली की पहाड़ियां मिली जो रात के वक्त बेहद खूबसूरत नज़र आ रही थी... लेकिन इतनी कड़ी धूप में वो भी तन्हा ...बेजान नज़र आईं... दिन की रोशनी में उनका अकेलापन साफ नज़र आया। हां कई जगह इन्सानों ने उनका ये अकेलापन मिटाने की कोशिश जरुरन उससे दर्द कम नहीं हुआ...बल्कि और बेपर्दा हो गया। इतना ही नहीं अरावली की इन पहाड़ियों को साक्षर बनाने के लिए जगह-जगह लोगों ने विज्ञापन लगाकर कोशिश भी की ...लेकिन इससे अकेलापन तो दूर नहीं हुआ अलबत्ता खूबसूरती पर पैबंद जरुर लग गए।

गर्मी पूरे शबाब पर थी... लिहाज़ा पूरी सावधानी बरतते हुए हम भी आगे बढ़ते रहे। जगह-जगह रुककर पानी पीते रहे... आराम करते रहे। घर पहुंचने से पहले मामा के गांव भी जाना था और जब हम वहां पहुंचे तो नज़ारा देखने लायक था। बचपन की याद ताज़ा हो आई... घर में बच्चे ही बच्चे... नाना-नानी... मामा-मामी और ढेर सारी मौसियां...सभी से मिलकर बहुत खुशी हुई...शाम होती जा रही थी...हम फिर से निकल पड़े...दिल्ली अभी दूर थी।

हालांकि अब गर्मी से परेशान होने की जरुरत नहीं थी... तेज़ी से अंधेरा होता जा रहा था...पर अब मैं आराम से बाइक चला रहा था अंधेरे की परवाह किए बगैर। भाई को गुड़गांव छोड़ा और फिर से बाइक दौड़ा दी दिल्ली की तरफ... सफर इतना लंबा हो चला था कि अहसास जैसे खत्म हो गया था... बस अब जल्दी थी जल्द से जल्द घर पहुंचने की... इंतज़ार वहां भी लंबा हो चला था... अहसास तब जागा जब घर पहुंचे... एक इत्मीनान सबके चेहरे पर था... औऱ एक विश्वास भी ...

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