रविवार, 7 अगस्त 2016

थाह लेते चेहरे ...



कुछ चेहरे आपकी स्मृति में दर्ज हो जाते हैं, . . 
सिर्फ अपनी छवि के साथ नहीं, बल्कि अपने पूरे व्यक्तित्व के साथ... 
संदर्भ सिर्फ एक तस्वीर तक ही सीमित नहीं है...  जीवन रंग-बिरंगे परिधानों (बानों) ... सजीली पगड़ियों (साफों) ... रौबीली मूछों से आगे ... उन तमाम अनुभवों में अंकित होता है, जिसकी छाप गुज़रता वक्त गाहे-बगाहे आपके चेहरे पर दर्ज करता रहता है, आपकी आंखों में सहेजता रहता है... वो अनुभव उन आंखों में से आपको ताकता है... परखता है... आपकी थाह लेता है... कि आप ज़िंदगी से उस वक्त क्या चाहते हैं, बात सिर्फ aim...click n forget सरीखी है, या फिर ये वार्तालाप एक इंसान का एक दूसरे इंसान से है। आप एक इंसान को किसी वस्तु की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं (नहीं करना चाहिए) , लेकिन वर्तमान में वस्तुनिष्ठ होना ज़्यादा प्रोग्रेसिव (प्रगतिशीलता का द्योतक) है... व्यक्तिनिष्ठ होना... सत्यनिष्ठ होना... शायद थोड़ा पीेछे छूट गया है . . .

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