अबूझ
सोच का - ख्यालों का ... ज़िंदगी का - सवालों का ... सफरनामा
मंगलवार, 5 अगस्त 2014
पेशेवर... एहसान-फरामोश
हर हर्फ़ चुप है
क्यूँ क़लम चुप है
नज़रें बेबस नहीं
बेशर्म हैं...
और चुप हैं
पर्दे के पीछे विकृत से
गुनहगार हैं चेहरे
ख़ामोश हैं
ये किन लोगों से इंसाफ़ चाहिए तुम्हें
ये कमज़र्फ हैं
पेशे से एहसानफरामोश हैं ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें