शनिवार, 30 नवंबर 2013

. . . . . . . ये रंग जिंदगी के . . .


ये हाथ कागज़ों से 
ये लफ्ज़ बादलों से
लिखते हुए किस्सा तेरा
हुआ ज़िक्र फासलों से . . .
पगडंडियों सी लिखावट
धुलती चली गई वो
हर शाम तुम्हें लिखा
बेताब बारिशों से . . .
हर रंग से लिपटकर
ख्वाबों ने जी समेटा
हुई धड़कनें मलंग सी
थामा जो हसरतों से . . .
उस धूप की इबारत
है वक्त के सफे पर
वो हाशिये पर लिखना
फिर रोज़ आदतों से . . .
दुआओं की ली स्याही
लिखा इबादतों से
है जिंदगी को बख्शा
खुद से ही ... ख्वाहिशों से . . . 
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हर राह पर भटक कर
सरे-राह खुद से मिलना
हर मोड़ पर हम उलझे
क्या पाया मंज़िलों से
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